नकली 'जगतगुरु' रामपाल जी महाराज की तथाकथित 'चुनौती' का पर्दाफाश

'जगतगुरु' रामपाल जी महाराज

सत्यान्वेषी बन्धुओं! स्वयं को जगतगुरु, परमात्मा और तत्वदर्शी कहने वाले रामपाल जी महाराज ने जनमानस को भ्रमित करके अपनी मिथ्या महत्वाकांक्षा की पूर्ति हेतु धर्म और परमात्मा के नाम पर एक ऐसा आडंबर फैलाया हुआ है जिसमे फंसकर लाखों लोगों का जीवन बर्बाद हो रहा है। परमात्मा बनने की अपनी इसी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए रामपाल जी ने बहुत ही कुटिल चाल चलते हुये दुनिया भर के धर्मगुरुओं को आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा (शास्त्रार्थ) की चुनौती तक दे डाली। रामपाल जी अपनी इस तथाकथित आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा के द्वारा किस प्रकार लोगों को मूर्ख बना रहे हैं यह इसी लेख में हम आगे देखेंगे लेकिन इससे पहले हम आपको यह बताना चाहेंगे कि रामपाल जी चुनौती को संज्ञान में लेते हुये परमपूज्य “सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस” द्वारा संस्थापित व संरक्षित संस्था “सदानन्द तत्त्वज्ञान परिषद” ने रामपाल जी की संस्था के प्रबन्धकों से सम्पर्क करके यह कहा कि रामपाल जी की चुनौती "सदानन्द तत्त्वज्ञान परिषद" को स्वीकार है लेकिन संवैधानिक कारणों को देखते हुये रामपाल जी को यह चाहिए कि वे "सदानन्द तत्त्वज्ञान परिषद" के लिए व्यतिगत रूप से पत्र लिखकर शास्त्रार्थ के लिए आमंत्रित करें। बहुत प्रतीक्षा करने के बाद भी जब रामपाल जी की तरफ से कोई पत्र नहीं आया तब दिनांक २६-०६-२०१२ को सदानन्द तत्त्वज्ञान परिषद द्वारा रामपाल जी को शास्त्रार्थ के लिए एक चुनौती भरा पत्र भेजा गया।

यह है वह पत्र-

सेवा में,
श्रीमान रामपाल जी महाराज
सतलोक आश्रम
बरवाला – हरियाणा

विषय - कलियुगीन एकमेव एक पूर्णावतार परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस द्वारा संस्थापित व संरक्षित संस्था 'सदानन्द तत्त्वज्ञान परिषद' द्वारा श्रीमान रामपाल जी महाराज को शास्त्रार्थ की चुनौती ।

महोदय,
खुदा-गॉड-परमेश्वर के कलियुगीन एकमेव एक पूर्णावतार परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस का उद्देश्य-
"मेरा उद्देश्य आप समस्त सत्यान्वेषी भगवद् जिज्ञासुजन को दोष रहित, सत्य प्रधान, उन्मुक्तता और अमरता से युक्त सर्वोत्तम जीवन विधान से जोड़ते-गुजारते हुये लोक एवं परलोक दोनो जीवन को भरा-पूरा सन्तोषप्रद खुशहाल बनाना और बनाये रखते हुये धर्म-धर्मात्मा-धरती रक्षार्थ जिसके लिये साक्षात् परमप्रभु- परमेश्वर-खुदा-गॉड-भगवान अपना परमधाम (बिहिश्त-पैराडाइज) छोड़कर भू-मण्डल पर आते हैं, आये भी हैं, में लगना-लगाना-लगाये रखना है । माध्यम और पूर्णतया मालिकान तत्त्वज्ञान रूप भगवद्ज्ञान वाले खुदा-गॉड-भगवान का ही होगा-रहेगा । किसी को भी पूरे भू-मण्डल पर ही इस परम पुनीत भगवत् कार्य, जिसका माध्यम और मालिक भी साक्षात् खुदा-गॉड-भगवान ही हों, में जुड़ने -लगने -लगाने-लगाये रखने में जरा भी हिचक नहीं होनी चाहिये । खुशहाली और प्रसन्नता के साथ यथाशीघ्र लग-लगाकर ऐसे परमशुभ अवसर का परमलाभ लेने में क्यों न प्रति स्पर्धात्मक रूप में अग्रसर हुआ जाय ? न कोई जादू, न कोई टोना- न कोई मन्त्र, न कोई तन्त्र । सब कुछ ही भगवत् कृपा रूप तत्त्वज्ञान रूप सत्य ज्ञान के माध्यम से । वेद-उपनिषद्-रामायण-गीता- पुराण-बाइबिल- कुर्आन- गुरुग्रन्थ साहब आदि-आदि सद्ग्रन्थीय सत्प्रमाणों द्वारा समर्थित और स्वीकृत विधानों से ही कार्यक्रम चल-चला रहा है और चलता भी रहेगा। मनमाना कुछ भी नहीं।"
विश्व बन्धुत्त्व एवं सद्भावी एकता आन्दोलन अन्तर्गत 'धर्म-धर्मात्मा-धरती' रक्षार्थ परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस की पूरे विश्व को यह चुनौती रही है कि –
"मैं तत्त्वज्ञान द्वारा जीव, ईश्वर तथा परमेश्वर तीनों का पृथक-पृथक बात-चीत सहित साक्षात् दर्शन तथा जीते जी मुक्ति अमरता का साक्षात् बोध करवाता हूँ । पूरे भूमण्डल पर यदि कोई भी मेरे द्वारा प्रदत्त तत्त्वज्ञान को गलत प्रमाणित कर देता है तो मैं अपने सकल भक्त-सेवक समाज सहित उसके प्रति समर्पित हो जाऊँगा और यदि वह गलत प्रमाणित न कर सका तो उसे भी मेरे प्रति समर्पित होना ही होगा। इसके अतिरिक्त पूरे भूमण्डल पर यदि अन्य कोई भी यह कहता हो कि उसके पास तत्त्वज्ञान है तो मैं सद्ग्रंथीय एवं प्रयौगिक आधार पर उसे गलत प्रमाणित करने के लिए तैयार हू।"

परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस जी के परमधाम गमन करने के 6 वर्ष बाद भी उपरोक्त चुनौती यथावत कायम है।
उपरोक्त चुनौती यथावत कायम है उनके शिष्यों द्वारा कायम है जिन्होंने उनके तत्त्वज्ञान में जीव-ईश्वर-परमेश्वर का साक्षात्कार किया है इस पूरे भूमंडल पर संत ज्ञानेश्वर के शिष्य ही जीव-ईश्वर-परमेश्वर का पृथक – पृथक अस्तित्व को जाने देखें है | यदि और कोई धरती पर दावा प्रस्तुत कर रहा है तो उसको गलत प्रमाणित करने कि खुली चुनौती दे रहे है|

धर्म-धर्मात्मा-धरती रक्षार्थ हेतु प्रतिबद्ध होने के कारण 'सदानन्द तत्त्वज्ञान परिषद' द्वारा श्रीमान रामपाल जी महाराज द्वारा धर्मगुरुओं को शास्त्रार्थ हेतु सार्वजनिक रूप से दिये गए आमन्त्रण को संज्ञान में लेते हुये, श्रीमान रामपाल जी महाराज को यह चुनौती दी जाती है कि मानव समाज के हित में सत्य के निर्णय हेतु परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस से तत्त्वज्ञान प्राप्त महात्माओं से शास्त्रार्थ करने के लिए 'सदानन्द तत्त्वज्ञान परिषद' के नाम एक व्यक्तिगत रूप से आमन्त्रण पत्र भेजें।
स्थान : -
यह आयोजन किसी भी धार्मिक धर्म स्थल पर मीडिया जगत एवं शासन-प्रशासन के सामने आयोजित होगी |
१- हरिद्वार
२- वाराणसी
३- इलाहाबाद

आशा है कि भगवद जिज्ञासु समाज को भ्रम से बचाने तथा परमसत्य से जोड़ने हेतु श्रीमान रामपाल जी महाराज ‘सदानन्द तत्त्वज्ञान परिषद’ के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर इसे क्रियान्वित करने में सहयोग करेंगे। सब भगवद् कृपा ।

दिनांक – २६-०६-२०१२

प्रार्थी
सतश्री सरोज देवी (प्रबंधक)
"सदानन्द तत्त्वज्ञान परिषद"
शाखा :- श्रीहरि द्वार आश्रम , हिल बाई पास रोड , (हनुमान मंदिर के ठीक बगल में )

संलग्न-
1. परम पूज्यनीय सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानंद जी परमहंस द्वारा लिखित सदग्रंथ – 'चुनौती भरा सत् सन्देश'
प्रतिलिपि –
1. मुख्यालय - 'सदानन्द तत्त्वज्ञान परिषद', पुरुषोत्तम धाम आश्रम , पुरुषोत्तम नगर , सिद्धौर , बाराबंकी – २२५४१३
2. मास्टर फाइल – 2012 – "परमतत्त्वम धाम आश्रम" – लखनऊ
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और यह है डाक भेजने की रसीद –

दुनिया भर के धर्मगुरुओं को चुनौती देने वाले रामपाल जी की तरफ से कोई उत्तर नहीं दिया गया। फिर लगभग एक माह बीत जाने के बाद पुनः पत्र भेज कर रामपाल जी को याद दिलाया गया लेकिन रामपाल जी ने कोई उत्तर नहीं दिया।
अब ऐसा भी नहीं है कि पत्र सतलोक आश्रम न पहुँचा हो क्योंकि सतलोक आश्रम के ही राहुल शर्मा जी ने यह बात स्वीकार की है कि उन्हे पत्र मिल चुका है।
आज तक कोई उत्तर रामपाल जी की तरफ से नहीं मिला। आखिर किस बात का भय सता रहा है रामपाल जी को ? क्यों डर रहे हैं शास्त्रार्थ करने से ?
देखिये रामपाल जी किस प्रकार पाखण्ड की पराकाष्ठा को पार कर रहे हैं -

आइये अब देखते हैं कि रामपाल जी की तथाकथित आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा की वास्तविकता क्या है- यह है रामपाल जी की वह तथाकथित चुनौती –

प्रचार-प्रसार समिति सतलोक आश्रम बरवाला, जिला-हिसार (हरियाणा)-भारत द्वारा विश्व के समस्त धर्मगुरुओं को जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी के साथ आध्यात्मिक ज्ञानचर्चा के लिए सादर आमंत्रित किया जाता है। इसके लिए आप जी आध्यात्मिक टी॰वी॰ चैनल “साधना टी॰वी॰” के प्रबन्धकों से सम्पर्क करें। साधना टी॰वी॰ के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा होगी क्योंकि जो धर्मगुरु आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा के मैदान में उतरे हैं उनके साथ हुई आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा का प्रसारण प्रति शनिवार व रविवार को सायं 7:55 से 8:45(50 मिनट) साधना टी॰वी॰ के माध्यम से किया जा रहा है। और इसी प्रकार आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा मे शामिल होने वाले आध्यात्मिक धर्म गुरुओं के साथ आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा की जाएगी। यदि आप टी॰वी॰ चैनल का खर्चा वहाँ करने में असमर्थ हैं तो आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा का सारा खर्च प्रचार-प्रसार समिति सतलोक आश्रम बरवाला, जिला, हिसार, हरियाणा (भारत) द्वारा वहाँ किया जाएगा। तो आइये जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज के साथ आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा के मैदान में। यदि कोई भी आध्यात्मिक गुरु आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा के लिए नहीं आते हैं तो यही समझा जाएगा कि आप सभी धर्म गुरुओं ने अपनी हार स्वीकार कर ली है तथा आपके पास यथार्थ भक्ति मार्ग नहीं है।

अब देखिए कितनी चालाकी से रामपाल जी अपनी तथाकथित आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा की चुनौती की आड़ में साधना टी॰वी॰ चैनल के साथ मिलकर लोगों को मूर्ख बना रहे हैं। वास्तविकता तो यह है कि रामपाल जी केवल उन्ही धर्म गुरुओं को आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा के लिए बुलाते हैं जिन्हे स्वयं धर्म और परमात्मा के बारे मे कोई जानकारी नहीं होती है। फिर जो धर्मगुरू आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा के लिए आते हैं उनसे रामपाल जी की सीधे आमने-सामने बैठकर कोई चर्चा नहीं होती है बल्कि साधना टी॰वी॰ चैनल का एक व्यक्ति रामपाल जी द्वारा दिये गए कुछ प्रश्न लेकर आगन्तुक धर्मगुरू के पास जाता है और उनसे उन प्रश्नों के उत्तर पूंछता है। धर्मगुरू द्वारा जो उत्तर दिये जाते हैं उनकी विडियो रिकार्डिंग कर ली जाती है। फिर उन्ही प्रश्नों के उत्तर रामपाल जी देते हैं और उसकी भी विडियो रिकॉर्डिंग कर ली जाती है। उसके बाद उसे साधना टी॰वी॰ चैनल पर दिखा दिया जाता है। अब आप सोचिए क्या यही होता है शास्त्रार्थ ? क्या ऐसे ही होती है आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा? यह कैसी चुनौती है ? क्या इस तथाकथित चुनौती की आड़ में रामपाल जी, लोगों को मूर्ख नहीं बना रहे हैं ?

रामपाल जी स्वयं को तत्वदर्शी कहते हैं। तत्त्वदर्शी सद्गुरु वह होता है जो तत्त्वज्ञान के द्वारा जीव, ईश्वर और परमेश्वर तीनों का ही पृथक-पृथक साक्षात् दर्शन करा दे और साथ ही साथ जीते जी मुक्ति-अमरता का साक्षात् बोध भी कराए।
अब एक तरफ तो रामपाल जी स्वयं को तत्वदर्शी कहते हैं और दूसरी तरफ बात करते हैं आध्यात्मिक ज्ञान चर्चा की। जबकि अध्यात्म तो तत्त्वज्ञान का अंश मात्र ही हैं।

अध्यात्म, जीव और आत्मा के मध्य तथा आत्मा से सम्बंधित साधनात्मक जानकारी और दर्शन उपलब्धि वाला विधान होता है। दूसरे शब्दों में आत्मा से सम्बंधित क्रियात्मक अध्यन पद्वति ही अध्यात्म है। यह इंसान को जीवमय अवस्था से ऊपर उठाकर आत्मामय (ब्रहममय) अवस्था में लाता है। अध्यात्म सामान्य मानव से महा मानव या महापुरुष या दिव्यपुरुष बनाने वाला एक योग साधना से सम्बंधित विस्तृत क्रियात्मक एवं अनुभूतिपरक अध्यात्मक जानकारी है, जिसके अंतर्गत शरीर में मूलाधार में स्थित सूक्ष्म शरीर रूपी जीव का कुण्डलिनी शक्ति के सहारे, दोनों नेत्रों के मध्य स्थित आज्ञाचक्र में पहुँचकर आत्मा से मिलन होता है। इस अवस्था को आत्मामय या ब्रहममय अवस्था कहते हैं। इस अवस्था में दिव्य दृष्टि के द्वारा स्वयं ज्योतिरूप शिव का साक्षात दर्शन होता है, और स्वांस-निःस्वांस के माध्यम से हँ,सो जप का निरन्तर अभ्यास करता हुआ साधक आत्मामय अवस्था में रहता है। अब जीव हंस कहलाने लगता है।

तत्त्वज्ञान वह “अशेष ज्ञान” है जिसे जान लेने के बाद कुछ भी जानना और पाना शेष नहीं रह जाता। तत्त्वज्ञान एकमात्र केवल परमेश्वर के लिए आरक्षित (रिजर्व) एवं सुरक्षित विधान है जिसका प्रयोग परमेश्वर उस समय करता है जब वह परम आकाश रूपी परमधाम से इस धरती पर अवतरित होता है। परमेश्वर के अवतार के सिवाय अन्य किसी को भी तत्त्वज्ञान के वास्तविक रहस्य का पता ही नहीं होता। यही कारण है कि परमेश्वर के अवतार की पहचान का एकमात्र आधार तत्त्वज्ञान ही है। परमेश्वर की वास्तविक जानकारी सिर्फ तत्त्वज्ञान के द्वारा ही हो सकती है। यह परमेश्वर के वास्तविक स्वरूप को जानने का एक विधान है।

वास्तव में तत्त्वज्ञान वह ज्ञान है जिसके अन्तर्गत पूरे ब्रह्मांड के जड़-चेतन तथा दोष-गुण के साथ ही “सम्पूर्ण कर्म विधान” तथा परिपूर्ण अध्यात्म विधान के अलावा परमेश्वर की वास्तविक जानकारी प्राप्त होती है। इसके साथ ही इसमें अद्वैत्तत्व बोध भी समाहित रहता है। अद्वैत्तत्व बोध का मतलब होता है कि परमेश्वर के अलावा दूसरी किसी भी चीज का कोई अस्तित्व नहीं है अर्थात खुदा-गॉड-भगवान के अलावा दूसरा कोई है ही नहीं, ऐसा स्पष्ट दिखलाई देना। समूर्ण सृष्टि में जड़-चेतन तथा परमेश्वर आदि जो कुछ भी है, सभी की रहस्यात्मक जानकारी करने की क्षमता एक मात्र इसी तत्त्वज्ञान में ही है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि खुदा-गॉड-भगवान के द्वारा ही भू-मण्डल पर हमेशा के लिए प्रमाणित एवं सत्यापित परमेश्वर का परिचय एवं पहचान तथा उनके कार्य करने का विधान ही तत्वज्ञान है। भगवान ने इसी लिए तत्त्वज्ञान विधान को अपने लिए ही आरक्षित एवं सुरक्षित कर लिया। तत्त्वज्ञान ही परमसत्य और संपूर्ण ज्ञान वाला विधान भी है।

इस प्रकार अध्यात्म तो ध्यान-साधना के द्वारा आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म को जानने-देखने का विधान है जबकि तत्त्वज्ञान परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म को जानने-देखने का विधान है। अध्यात्म के द्वारा आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म को जनाने-दिखाने वाला गुरु आध्यात्मिक गुरु कहलाता है जबकि तत्त्वज्ञान के द्वारा परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रह्म को जनाने-दिखाने वाला सद्गुरु तत्त्वज्ञानदाता या तत्त्वदर्शी सद्गुरु कहलाता है। आध्यात्मिक ज्ञान देने वाले गुरु जी लोग तो इस धरती पर अनेकों की संख्या में हमेशा रहते हैं लेकिन तत्त्वज्ञान देने वाला सद्गुरु एक युग में केवल एक ही बार इस धरती पर आता है।

वास्तविकता तो यह है की रामपाल जी को अध्यात्म के बारे में ही ठीक से जानकारी नहीं है तत्त्वज्ञान तो बहुत दूर की बात है। रामपाल जी को यह पता ही नहीं है कि अध्यात्म क्या होता है और तत्त्वज्ञान क्या होता है इसलिए उन्होने दोनों का खिचड़ी बना कर रख दिया है। स्वयं भी भ्रमित हैं और जनमानस को भी भ्रमित करने मे लगे हुये हैं।
सब भगवद् कृपा।

-------- सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस